उज्जैन जिले की तराना तहसील के तहसील कार्यालय में कल शाम एक 50 वर्षीय दिव्यांग ने सल्फास की गोली खाली थी। इस दिव्यांग को तराना पुलिस द्वारा उज्जैन लाया गया था लेकिन रास्ते में ही इसकी मौत हो गई। इस दिव्यांग ने क्यों आखिर तहसील कार्यालय में ही अपनी जान दी।
अपना जिंदा होने का सबूत लेकर घूमता रहा दिव्यांग नारायण।
उज्जैन जिले की तराना तहसील के बाहर इस तरह जहर खाकर पड़ा रहा। उज्जैन जिला अस्पताल में हुई मौत।
इस गिलास में सल्फास की गोली डालकर पी गया।
उज्जैन । उज्जैन की तराना तहसील के तहसील कार्यालय में कल शाम होते-होते तहसील कार्यालय के बाहर मैदान में एक 50 वर्षीय दिव्यांग ने अपनी दोनों बैसाखियों को एक तरफ रखकर सल्फास की गोली का पैकेट निकला गिलास में घोला और पी गया। जहर खाने के बाद इस दिव्यांग को तराना पुलिस ने गंभीर हालत में उज्जैन लाई लेकिन इस दिव्यांग की मौत हो गई। अब देखिए आखिरकार इस 50 वर्षीय दिव्यांग ने क्यों अपनी मौत को गले लगाया और आत्महत्या करने का स्थान तहसील कार्यालय ही कोई क्यों चुना। दरअसल तराना तहसील के ग्राम सिद्धपुर निपान्या निवासी 50 वर्षीय नारायण सिंह पिता प्यार सिंह गुर्जर पिछले कई माह से सरकारी ऑफिसों के चक्कर लगा लगाकर परेशान हो गया था। क्योंकि वह अपने जिंदा होने का सबूत अपने हाथों में लेकर सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाकर यह साबित कर रहा था कि वह जिंदा है। लेकिन उसकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी। परेशान होकर नारायण को आत्महत्या करना ही पड़ी और आज वह हकीकत में मर गया। “अग्निबाण ने भी इस खबर को प्रकाशित किया था की एक शख्स अपने जिंदा होने का सबूत अपने हाथों में लेकर घूम रहा है”। लेकिन फिर भी सरकारी तंत्र को यह शख्स साबित नहीं कर सका कि वह जिंदा है। मौत से पहले नारायण 6 माह तक अपने मृत्यु प्रमाण पत्र को जिंदा होकर झूठ लता रहा और सरकारी कार्यालय में सबूत लेकर घूमता था और एक शिकायती आवेदन साथ में रहता था। तराना के ग्राम सिद्धिपुर निपान्या में रहने वाले कृषक नारायण सिंह गुर्जर पिता प्यार जी ने अनुविभाग , थाना प्रभारी तराना सहित सरकारी कार्यालयों को शिकायती आवेदन किया था , जिसमे धोखाधड़ी और सड़क हादसे में मिली राशि को हड़पने के लिए फर्जी तरीके से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा कर राशि हड़पने की शिकायत की थी। मृतक नारायणसिंह ने अपने शिकायती आवेदन में बताया था कि वह घर छोड़कर बैजनाथ महादेव मंदिर आगर में भिक्षावृत्ति करता था छह माह पूर्व सड़क हादसे में मोटर सायकल की टक्कर से पैर टूट गया था। आगर पुलिस ने मदद करते हुए उसे उज्जैन रेफर करवा कर परिवार के लोगों को सूचना दी थी जिस पर परिवार जन उज्जैन जिला हॉस्पिटल से छुट्टी करवाकर घर ले गए और घर में बंद कर दिया और परिवार जन आगर जाकर एक्सीडेंट करने वाले व्यक्ति से एफआईआर का दबाव बनाकर इलाज के लिए 40 हजार रुपए लेकर राजीनामा प्रस्तुत कर दिया पर इलाज के नाम पर लिए पैसे से इलाज नहीं करवाया पैर का ऑपरेशन नही करवाने से पैर की हड्डी दो जगह टूटी और वह दोनों पैरों से चलने में असमर्थ हो गया। नारायण ने मीडिया को बताया था कि हमारी पैतृक संपत्ति पर से मेरे भाइयों के कहने पर पटवारी और पंचायत प्रबंधन ने जालसाजी कर मैरे नाम नारायण सिंह के नाम की भूमि पर से नाम कम करवा कुछ भूमि भाई ने तो कुछ भूमि को विक्रय करने का आरोप भी लगाया था। नारायण ने बताया था कि उसके भाइयों द्वारा इसका नकली मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर जमीन अपने नाम करवा ली थी । जब नारायण को इस बात का पता चला तो वह अपना मृत्यु प्रमाण पत्र हाथों में लेकर तराना तहसील सहित थाने में एवं सरकारी कार्यालयों में आवेदन देकर फरियाद कर रहा था कि वह जिंदा है मरा नहीं है। लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी और परेशान होकर आखिर उसे आत्महत्या करना पड़ी। अब इस पूरे मामले में किस तरह की जांच होती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है यह बड़े अधिकारियों को देखना होगा।
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