भगवान श्री राम का आदर्श व्यक्तित्व मानव मात्र के लिए चरम मूल्य है , क्योंकि श्रीराम मानव मात्र के लिए चरम मूल्य हैं । मानव समाज में मानवीय मूल्यों की स्थापना का श्रेय श्रीराम जी के आदर्श चरित्र को ही प्राप्त है । यही कारण है कि श्रीराम को नारायण के रूप में पूज्य भाव प्रदान करते हुए भी , हम नर – रूप में भी अपने सर्वाधिक समीप देखते हैं । वस्तुतः मनुष्य मात्र के राम के प्रति आकर्षण का प्रमुख कारण श्री राम जी का नरत्व है न कि ब्रह्मत्व । उनके जन्म कर्म सभी मानुषी होने के कारण ही वे मानवीय मूल्यों के केन्द्र हैं तथा उनकी सत्ता सार्वभौमिक एवं अप्रमेय है । इसीलिए मैथिली शरण गुप्त की लेखनी भी लिख उठती है कि –
” मैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया ।
मैं यहाँ एक अवलम्ब छोड़ने आया ।।
भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया ।
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया ।।
संदेश नहीं मैं यहाँ स्वर्ग का लाया ।
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया ।। ”
श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी जी ने राम के नारायण एवं नर दोनों रूपों का प्रतिपादन प्रस्तुत कर उन्हें मनुष्य मात्र की श्रद्धा एवं सहानुभूति का पात्र बना दिया है ।
रामचरितमानस के महानायक श्री राम एक आदर्श मानव के रूप में परिलक्षित होते हैं । उनके द्वारा राक्षसों के वध हेतु अपनाई गई एक दीर्घ प्रक्रिया श्री राम की मानवीयता को प्रमाणित करती है । राम का आदर्श व्यक्तित्व असाधारणता में साधारणता तथा साधारणता में असाधारणता की अभिव्यक्ति प्रस्तुत करता है । उनके व्यक्तित्व का यह वैशिष्ट्य ही मानवीय समस्याओं के समाधान का कारण है ।
गोस्वामी जी ने राम के ऐश्वर्य व मानवीय दोनों स्वरूपों का प्रतिपादन किया है । ऐश्वर्य स्वरूप से भक्त के अन्दर पूज्य भाव की सृष्टि होती है तथा मानवीय स्वरुप अनुकरणीयता की अनुकूलता प्रस्तुत करता है । श्री राम के मानवीय आदर्श के माध्यम से ही मानव समाज में लोक चेतना के संस्कारों की स्थापना संभव हुई है ।विभिन्न प्रकार के संघर्षों एवं समस्याओं से जूझतेहुए मानव समाज का आत्मबल संघर्षों में मुस्कराने वाले राम के व्यक्तित्व द्वारा ही बढ़ाया जा सकता था । इसीलिए गोस्वामी जी ने रामचरित मानस की रचना की ।
श्री रामचरित मानस भारतीय वसुन्धरा पर मानवीय मूल्यों का अनुपम एवं अद्वितीय उपहार है । श्री रामचरित मानस का धर्म मानव धर्म है एवं इसकी संस्कृति मानव संस्कृति है । इसकी सार्वभौमिक लोकप्रियता का कारण भी इसमें विद्यमान मानवता ही है । इसीलिए मैंने श्री रामचरित मानस में वर्णित मानवीय मूल्यों को अपने शोध का विषय बनाया । श्री रामचरित मानस मानवमूल्य परक ग्रन्थ है ।इसमें समस्त प्रकार के मानवीय मूल्यों का परिदर्शन होता है । चाहे वे आध्यात्मिक , धार्मिक , सामाजिक , सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक किसी भी प्रकार के हों । पाश्चात्य एवं भारतीय मूल्यवादियों के मूल्य विषयक दृष्टकोण को निष्कर्षतः हम पुरुषार्थ चतुष्टय के रूप में देखते हैं , वे हैं धर्म , अर्थ , काम एवं मोक्ष । इन्हें हम महामानव मूल्य के रूप में भी मानते हैं । यही हमारे जीवन के उद्देश्यों में निहित रहते हैं । पश्चिमी चिंतन ने जहाँ अर्थ को वरेण्यता प्रदान की है वहीं भारतीय चिंतन में मोक्ष को वरेण्य माना गया है । मोक्ष भारतीय मूल्यवादियों का अन्तिम चरम मानवीय मूल्य है । मोक्ष को भारतीय आध्यात्मिक जगत में मानव के उत्कर्ष की अंतिम अवस्था के रूप में स्वीकार किया गया है । अर्थ और काम को धर्म के अनुशासन में उपयोग में लाने की आज्ञा है ।
– क्रांतिकारी सन्त परमहंस डॉ अवधेशपुरी जी महाराज
पीठाधीश्वर – स्वस्तिक पीठ , उज्जैन